अध्याय १

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नगर में राजकुमार के पुनरागमन की चर्चा हो रही थी। राजकुमार कई वर्ष पश्चात नगर लौटे हैं ।

बालावस्था में राजकुमार को राज-भवन के भीतर रखा जाता था इसीलिए राज-भवन के निवासियों के अतिरिक्त राजकुमार लव को किसी ने न देखा था । राजकुमार लव आठ वर्ष की आयु में ही नगर से दूर राज्य में कहीं प्रशिक्षण के लिए गए हुए थे । युवराज लव अत्यंत ही गुणवान एवं रूपवान युवक था जो धनुर्विद्या से लेकर हर क्षेत्र की विद्या का स्वामी था । जिससे उत्तम राजा कदापि अन्य कोई न हो सकता था परिणामस्वरूप राजसभा उन्हें बहुत पूर्व ही युवराज घोषित कर चुकी थी । कम से कम प्रजाजनों को तो तब से यही कहा गया था ।

इतने दिवस पश्चात नगर लौटने पर युवराज महल से बाहर नगर के दर्शन करना चाहते थे सो वे नगर के दर्शन हेतु नगर के बाजार के सैर करने लगे ।

संध्याकाल में बाजार दीपों से प्रकाशित एवं विभिन्न प्रकार की दुकानों पर लगी भीड़ से भरा था । विक्रेता ग्राहकों को आकर्षित करने हेतु उन्हें पुकार रहे थे ।

महिलाएँ श्रृंगार के वस्तुओं में रुचि दिखा रही थीं । युवतियाँ पुष्पों की मालाएँ बेच रही थीं ।

उसने मुस्कुराकर मीरा से कहा, "इन वर्षों में मुझे ज्ञात न था की यह स्थान इतना परिवर्तित हो चुका है। "

मीरा ने केवल सिर हिलाकर सहमति दी ।

टहलते-टहलते लव का ध्यान एक छोटी सी दुकान की ओर आकर्षित हुआ । दुकान में एक वृद्धा स्त्री बैठी थीं। यह दुकान अन्य दुकानों की तुलना में आकर्षक न होने के कारण वहाँ अधिक ग्राहक भी न दिख रहे थे।

दुकान के भीतर एक वृद्ध स्त्री बैठी थीं जो संभवतः दुकान की मालकिन थीं । उन्हें इस प्रकार अकेला बैठा देखकर लव को उन पर दया आ गई । वह उनकी ओर बढ़ा । मीरा भी उसके पीछे गई ।

दोनों को अपनी ओर आता देखकर वृद्धा स्त्री खड़ी हो गईं । वृद्ध स्त्री ने सहर्ष उनका स्वागत किया ।

"हे युवक,तुम क्या मोल लेना चाहोगे? कहो, मैं तुम्हारी सहायता कर सकती हूँ ।"

"वो... आ.." ।

इससे पूर्व की लव एक पूर्ण शब्द का उच्चारण भी करता, वृद्धा बोलीं ।

"देखो ! ये जोड़ेदार कान की बालियाँ कितनी सुंदर हैं। ये तुम और तुम्हारी प्रिया पर कितनी सुंदर लगेंगी ! है ना ? ये बालियाँ विशेषतः नवविवाहितों के लिए हैं ।"

इससे पहले कि लव कुछ कहता, मीरा ने जल्दी से आगे आकर कहा -" माता, मैं इनकी पत्नी नहीं,इनकी सखी हूँ । "

" ओह ! मुझे क्षमा करना पुत्री। मुझे ज्ञात न था।" "पुत्र, मैं केवल यह कहना चाह रही थी की ये बालियाँ कितनी सुंदर हैं । क्या तुम इन्हें मोल लेना चाहोगे ? "

वृद्धा स्त्री के मुख पर आशा देखकर लव को उन्हें इनकार करने की इच्छा न हुई। उसने वृद्धा को हाँ में उत्तर दिया । वृद्धा स्त्री ने एक छोटी सी लाल थैली में बालियाँ डालकर लव को थमा दी और कहा - " पाँच ताम्र सिक्के। "

लव के पास तो केवल चाँदी की मोहरें ही थीं । उसने मीरा की ओर सहायता के लिए देखा । मीरा ने अपनी थैली से निकालकर स्त्री को पाँच सिक्के दिए । वृद्धा स्त्री ने उन्हें धन्यवाद कहा । लव ने थैली लेकर अपने पास रख ली ।

वे दोनों उधर से आगे चले । कुछ देर पश्चात चलते- चलते लव ने मीरा की ओर देखा फिर पास के वृक्ष के तने पर चिपके एक छोटे से कीड़े को उठाकर मीरा के केश पर रख दिया । मीरा को लगा लव ऐसे ही मजाक कर रहा है । वह अपने बालों से उस छोटी सी वस्तु को निकालने लगी परंतु यह क्या??!

अपने हाथों में इस छोटे से जीव को देखकर मीरा चीखती हुई लव के पीछे दौड़ी । लव तो पहले ही पलायन कर चुके थे ।

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Opowieści tętniące życiem. Odkryj je teraz