अध्याय १३ (भाग-२)

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कक्ष की एक दीवार पर मशाल जल रही थी । वह युवक कठिनाई से खड़ा हुआ । उसने द्वार के समीप उपस्थित दोनों व्यक्तियों को देखा किंतु उसकी दृष्टि मुखौटे से आच्छादित मुख पर टिकी रह गई । उसकी वस्त्रहीन, सुगठित ऊपरी देह पर यहाँ-वहाँ गहरे घाव थे । बाईं भुजा पर भी कदाचित एक घाव था जिसपर एक काले वस्त्र का टुकड़ा बँधा था संभवतः इसी धोती का जो उसने धारण की हुई थी; भुजा पर सूखे रक्त का प्रवाह दिख रहा था । उसके लंबे घुँघराले केश उसके गर्दन व माथे से चिपके हुए थे ।

युवक ने भौंहें चढ़ा रखी थीं ।
'यह दोनों उन लोगों में से तो कदापि प्रतीत नहीं होते।'
उसने अपनी सिकुड़ी हुई भौंहें तनाव से मुक्त कर उन दोनों की ओर प्रश्नसुचक नेत्रों से देखा मानो उनका परिचय जानना चाहता हो ।

कुमार आयुध ने बालक की ओर देखा जो सजल नेत्र लिए युवक से चिपका खड़ा था तत्पश्चात उसके समक्ष ढाल बने युवक की ओर जिसका एक हाथ उस भयाकुल बालक के सिर पर सहलाता हुआ उसे शांत करने का प्रयास कर रहा था । कुमार अविचलित स्वर में बोले,"आपको क्षति पहुँचाने का कोई आशय नहीं । कृप्या, निश्चिंत रहें । मेरे संग उपस्थित यह व्यक्ति स्वयं युवराज हैं ।"

युवक परिचय पाते ही घुटनों पर गिर गया । वह बेड़ियों से आबद्ध हाथ जोड़कर बोला,"भूल क्षमा करें, युवराज ।"

लव आयुध के परिचय की प्रतीक्षा कर रहा था किंतु कुमार आयुध ने तो इन शब्दों के पश्चात पूर्ण विराम ही लगा दिया । स्वयं का परिचय तो दिया ही नहीं। उसकी विकलता उसके अस्थिर नेत्रों में स्पष्ट दिखी जो एक क्षण के लिए आयुध और युवक की बीच भटकने लगे। अब उसे ही आगे बढ़ना होगा । यही सही !

युवराज के ललाट इस ठंड में भी स्वेत की उपस्थिति थी । "...नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं। इस प्रकार की परिस्थिति में ऐसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी। आपका परिचय?", लव ने स्थिर नेत्रों से युवक की दिशा में देखते हुए मुखौटे के भीतर से ही यौवन की गरिमा के साथ गंभीरता से कहा।

लव की दृष्टि उस बालक पर पड़ी जिसके एक कपोल पर अश्रु की एक धारा बहने लगी । वह बालक जैसे लव को घृणा की दृष्टि से देख रहा था क्योंकि उसने समझा इन दोनों ने इस युवक को उनके समक्ष झुकने को विवश किया है । लव ने बालक को देखते तलवार को उसकी दृष्टि से छिपा-सा लिया ।

युवराज मंद वृद्धि से आगे बढ़े । युवक उठ खड़ा हुआ व परिचय देते हुए उसने कहा,"युवराज मेरा प्रणाम स्वीकार करें । मेरा नाम ध्रुव है तथा मैं न्याय समिति का सदस्य हूँ । यह बालक मेरी बहन का पुत्र है।"

लव दोनों हाथ पीछे किए आगे बढ़ता हुआ सिर हिला रहा था मानो सब कुछ बड़े ध्यान से सुन रहा हो। अब वह युवराज है तो वैसी गंभीरता भी तो झलकनी चाहिए !

युवक के समीप पहुँचकर युवराज ने बेड़ियों पर तलवार घुमाई । (बाएँ से दाएँ एवं दाएँ से बाएँ) तलवार के दो बड़े ही शक्तिशाली वार ने बेड़ियों को परास्त कर युवक को बंधन से मुक्त कर दिया । युवक कलाई को पकड़े हुए था किंतु उसकी सशंक दृष्टि का केंद्र युवराज थे । उसके मन में उठते प्रश्न एक दूसरे का विरोध कर रहे थे ।

लव ने तलवार म्यान में बंद की तथा बालक की ओर कोमल दृष्टि से देखा । उसने कमर पर से एक छोटी थैली खोली, झुक कर, उसने वस्त्र को हाथ में फैलाकर, बालक के समक्ष प्रस्तुत किया ।

"मैं तुमसे मित्रता करना चाहूँगा । मेरा नाम लव है।तुम्हारा नाम क्या है?...चिंता न करो। मैं तुम्हारी सहायता करना चाहता हूँ ।", उसने कोमल स्वर में कहा । सतर्कता से उसने हाथ बढ़ाकर कोमल अंगुलियों के स्पर्श से बालक के अश्रु पोंछे ।

कुमार आयुध भी निकट ही खड़े थे । यद्यपि लगध-कुमार एवं इस युवक-ध्रुव के बीच दूर-दूर तक कोई संबंध न था इस समय दोनों के मुख पर एक से भाव थे । दोनों ही हतबुद्धि से खड़े थे।

ऐसी विकट परिस्थिति में भी युवराज अपने साथ 'मिष्ठान' लिए फिरते हैं ।

बालक ने युवक की ओर देखा । सहमति मिलने पर बालक अवरुद्ध कंठ से बोला,"... मेरा नाम...सब... मुझे लबी ...कहते हैं...।" उसने मिस्ठान की ओर देखते हुए धीरे-धीरे कहा ।

टिप्पणी :

कपोल cheek
यौवन adolescence
विकलता nervous
आबद्ध tied
हतबुद्धि puzzled

R.S.:(Let all the comments be in Hindi today.)
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शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now