अध्याय ११

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पूर्व पूर्णिमा के चंद्र के प्रकाश से वृक्षों का शीर्ष भाग उज्ज्वल था । उनकी आकृति उसी प्रकाश में धुली हुई लगती थी । पथ पर लंबी घास की पत्तियाँ बिछी हुई थीं । विशाल शिलाएँ, जिन पर दूर्वा उगी हुई थी, पर्वत का आभास कराती थीं ।

घने वृक्षों व पशु-पक्षियों से सुरचित यह वन रहस्यों का निवास है ।

स्वामी द्वारा निर्देशित वह श्वेत अश्व शांत गुल्मों में मार्ग में जन्मी वनस्पति को कुचलता स्वयं की गति का प्रदशन कर रहा था जिसके खुरों की ध्वनि अत्यंत स्पष्ट थी ।

अश्व को ठहराकर अश्वारोह ने भूमि पर पग रखा । उसने स्वयं ही इस यात्रा को पुनः आरंभ करने का निर्णय लिया । जन इसे निशाचरों के अतिरिक्त पिशाचों का निवास स्थान भी बतलाते हैं । किंतु अञ्जी के वीर पुत्र युवराज लव मनुष्यों के अतिरिक्त किसी अन्य से भय न लगता था ।

लव ने इस वन के विषय में अध्ययन कर रखा था ।

मन में एक ही विचार का चिंतन करते हुए उन्होंने आकाश की ओर देखा जहाँ यहाँ-वहाँ कुछ काली घटाएँ , तारे एवं चंद्र दिखते थे । भेड़ियों तथा अन्य वन्य पशुओं का कूजन् अत्यंत भयानक लगता मानो इसी क्षण एक पास की गुल्म से निकलकर अपना शिकार बना लेगा किंतु यह बालक अपने पग भी देखकर न रख रहा था ।

शेष बचे प्रेतात्मा! तो इस समय यदि एक कुमार लव के समक्ष आकर उपस्थित हो जाता तो राजपुत उस निष्प्राण जीव के शीर्ष पर खंजर आर-पार कर उतने ही आनंद से अग्रसर होते जितने आनंद से वे अभी भ्रमण कर रहे थे ।

प्रतियोगिता की चिंता न थी संभवतः थी भी किंतु इस प्रकार अन्य किसी को सूचित किए बिन यहाँ आने का आशय युवराज के व्यक्तिगत कार्य से संबंधित था ।

यदि उनके दिशा का अनुमान व मार्ग का चुनाव यथार्थ था तो वह छिपा हुआ भवन अधिक दूर न था ।

अश्व के दौड़ने की ध्वनि लव को वास्तविकता में खींच लाई।

"क्या प्रेतात्माएँ अश्वों पर पधारती हैं? "

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now