अध्याय १२

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जैसे ही उसे स्वयं के पग तले रिक्तिता का आभास हुआ, दीप उसके हाथों से छूटकर भूमि (धरातल) पर गिर गया, क्षण भर में ही तलवार म्यान से बाहर थी एवं वह स्वयं अपने कौशल का प्रदर्शन करते हुए तलवार के बल पर सफलतापूर्वक भूमि (गुफा के भीतर) पर उतर कर सकुशल अपने पैरों पर खड़े हो गए ।

तलवार का एक चौथाई हिस्सा भूमि में दब चुका था । लव ने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा । यहाँ अंधकार था । वह छिद्र जिसके कारण वह यहाँ आ पड़ा था, भूमि से अत्यंत ही ऊँचाई पर था । इस छिद्र से चंद्र के प्रकाश की कुछ किरणें यहाँ इस अँधेरे स्थान में प्रवेश करती थीं जो इस समय युवराज के अर्ध-आवृत्त मुख को एक अलौकिक आभा में लपेटे लेती थी । उसके मुख पर धारण किया हुआ रजत मुखौटा ऐसा चमक उठा मानो किसी दुर्लभ धातु से निर्मित हो ।

अभी मन शांत न हुआ था की अब उसे अपने पीछे श्वास की आहट सुनाई पड़ी, आभास हुआ उसके अतरिक्त भी यहाँ कोई उपस्थित है ।

उसने भूमि में फँसी तलवार वेग से बाहर खींची, धातु की तीव्र व उग्र ध्वनि के साथ ही अंधकार में खड़े उस व्यक्ति पर साध कर वह स्वयं एक पग पीछे हट गया । संभवतः उस व्यक्ति के रूप एवं वेश ने उस समय उसके प्राणों की रक्षा की क्योंकि उसे देखते ही आक्रमण करने के स्थान पर लव ने कड़क स्वर में पूछा,"आप कौन हैं !?"

लव को यह भान था अथवा नहीं, उन्होंने तलवार हटाए बिन ही प्रश्न किया । विपक्ष की दृष्टि गंभीर थी। " मैं लगध का प्रथम राजकुमार, वत्सला पुत्र आयुध सिंह ।" लव को उत्तर प्राप्त हुआ किंतु विस्मयकारी ।

यद्यपि युवराज को ऐसे ही किसी उत्तर की अपेक्षा थी किंतु इस युवक का स्वयं लगध कुमार होना भी अप्रत्याशित था सो लव के नेत्रों का आश्चर्य से भरा होना स्वाभाविक था ।

लगध-कुमार ने लव के फटे हुए नैनों को देखकर कहा,"मुझसे युवराज को किसी भी प्रकार की हानि नहीं, ऐसा आश्वासन देता हूँ ।"

चंद्रिका में चमत्कार था अथवा इस राजकुमार की आभा इतनी प्रदीप्तिमान वह देवपुत्र सा प्रतीत होता था । आयुध की दृष्टि ही स्वयं किसी तलवार की धार से कम तीव्र न थी । नयन ऐसे जैसे विश्व के दो बहुमूल्य रत्न इन्हीं की शोभा हेतु थे ।

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now