अध्याय ९

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लाल धूली में रंगे उस विशाल जनसमूह में उपस्थित युवक, युवतियाँ, पुरुष-स्त्रीयाँ धीरे-धीरे प्रस्थान कर पूर्व-निशा के तारों से भरे काले-अँधेरे आकाश तले स्थित उस जीवंत,उज्ज्वल व शोभायमान नगरी में इधर-उधर भ्रमण करने लगे ।

अन्य सभी के विपरीत,'वह' अब भी वहीं, उसी मुद्रा में, उसी स्थान पर एक ही दिशा में देखते हुए, ईश्वर की अद्वितीय उत्तम रचना की भाँति (जो वो था) खड़ा था।

" चलें?" उसने दूसरे युवक को कहते सुना।
" हम्म?" उसके कंठ से स्वर निकला, उसका मन अब भी कहीं और ।
"निवास...नहीं. लौटना. तुम्हें...?",युवक ने उसके और निकट आ, उसके नयनों में देखते हुए,धीमे स्वर में एक-एक कर कहा ।

"ओह..."उसके कंठ से द्वितीय स्वर यही निकला।"मार्ग दर्शाइए.." पूर्णतः चेतना में आने के पश्चात, दाहिना हाथ बढ़ा कर, मुख पर स्मित लिए उसने कहा । किंतु उसके समक्ष उपस्थित युवक जब न हिला तो उसने बाएँ हाथ का प्रयोग कर युवक को मार्ग से हटा स्वयं वहाँ से जाने लगा ।

'ऐसा नहीं की तुम दृष्टिहीन हो...।' द्वितीय युवक ने मन ही मन कहा किंतु ये शब्द उसकी जिह्वा पर न आए ।

वह हल्की हरे-रंग के वस्त्र व रजत आभूषणों से सज्जित उस युवक के पीछे थोड़ा दौड़ा और जल्द ही उसके साथ-साथ चलने लगा और बोला,"ठहरो तो..,मेरा त्याग कर रहे हो? सेवा कौन करेगा तुम्हारी?

कोई प्रत्योत्तर न मिलने पर वह आकाश की ओर देखकर फिर बोल उठा,"...एक उत्तर दो । पहले तो आने से इन्कार कर रहे थे । अब कुमार के नयनों को ऐसा क्या भा गया की वे प्रतिमा बने वहीं स्थित होना चाहते हैं? रुचिकर लग-? "

"नहीं।"

" कल...प्रतियोगिता-"
" नहीं! ", 'युवक' ने उसके वाक्य के पूर्ण होने से पूर्व ही स्वयं पूर्ण विराम लगा दिया ।
" नहीं? क्यों नहीं? " "विचार करो, इन बलशाली व योग्य राजकुमारों के मध्य प्रतियोगिता । इससे रुचिकर और क्या हो-"

"क्षमा कीजिए,।"

वह उत्साह से फूटता यह सब वर्णन किए जा रहा था जब उसे अपने पीछे किसी के अविलंब क्षमा माँगने का स्वर श्रवण हुआ । उसके मुड़कर देखने पर उसे केवल गहरे-लाल आवरण में आच्छादित एक व्यक्ति दूर जाता दिखाई दिया ।

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Where stories live. Discover now